द गर्ल इन रूम 105–२२
पुलिस वाले आ रहे हैं क्या?' मैंने पूछा।
सौरभ ने पीछे देखा। 'नहीं, वे मेन गेट के बाहर ही रुक गए।'
'वो लोग इस कैंपस के अंदर नहीं आते, मैंने दांत दिखाते हुए कहा ।
पुलिस वालों को आईआईटी स्टूडेंट्स के बारे में पता था कि ये कभी भी अपनी बाइक उठाकर बाहर जाया करते थे। अधिकतर मौकों पर पुलिस उन्हें जाने देती थी।
'लेकिन ये कोई बहुत अच्छा आइडिया नहीं था। अब पुलिस वालों के पास तुम्हारा बाइक नंबर है।"
'उनके पास और भी बहुत सारे काम हैं।'
'लेकिन अब हिमाद्रि के अंदर कैसे जाओगे?'
'जैसे पहले जाता था, पेड़ पर चढ़कर।'
'सीरियसली, भाई? तुम अब स्टूडेंट नहीं हो ना केवल तुम मुसीबत में पड़ सकते हो, बल्कि जेल भी जा सकते हो।'
'रिलैक्स।' मैंने हिमाद्रि से पचास मीटर पहले बाइक पार्क कर दी। गर्ल्स हॉस्टल के मेन एंट्रेंस पर चौबीस घंटे
सिक्योरिटी रहती थी। और हर घंटे एक पैट्रोलिंग जीप भी यह देखने के लिए चक्कर लगाती रहती थी कि कहीं गार्ड सो तो नहीं गए। उसके अंदर जाने का इकलौता रास्ता आम का वो पेड़ ही था। रूम नंबर 105 हिमाद्रि के फर्स्ट फ़्लोर का सबसे कोने वाला रूम था। वह दूसरे रूम्स से कटा हुआ था और
पांच साल पहले आईआईटी जॉइन करने से लेकर अब तक ज़ारा वहीं रहकर पढ़ाई कर रही थी। उसके कमरे की खिड़की बहुत बड़ी थी और उसके ठीक सामने वह आम का पेड़ था।
यह रूम बहुत डिमांड में रहता था और जारा की ख़ुशनसीबी ही थी कि पीएचडी स्टूडेंट के रूप में आईआईटी जॉइन करते ही उसे यह रूम मिल गया। हम इस रूम नंबर 105 को अपना 'लिटिल होम' कहा करते थे, क्योंकि यहीं पर हमारी सबसे ज़्यादा मुलाकातें हुआ करती थीं।
मैं कभी ज़ारा को अपने हॉस्टल लेकर नहीं गया था। लड़कियों को हॉस्टल में ले जाने की इजाज़त तो खैर नहीं ही थी, में इस बात को लेकर भी सचेत रहता था कि वहां के लड़के लड़कियों के कितने भूखे थे। ऐसे में जारा
को वहां लेकर जाना और अपने कमरे में बंद हो जाना उनके ज़ख्म पर नमक छिड़कने जैसा रहता।
इजाजत तो मुझे हिमाद्रि में जाने की भी नहीं थी, लेकिन अगर आप चुस्त-दुरुस्त हों तो रूम नंबर 105 के
बाहर वाला वो आम का पेड़ अंदर जाने में आपकी मदद कर सकता था। मैं हास्ते में एक रात उस पेड़ की मदद से
हॉस्टल में ज़रूर चले जाया करता और सुबह होने से पहले ही वहां से लौट आया करता था। वहां पर कभी किसी
को यह पता नहीं चला कि जारा के यहां कोई लड़का आया करता था। ये पूरा सिस्टम बेहतरीन ढंग से काम करता
रहा, जब तक कि हमारा ब्रेकअप नहीं हो गया। सौरभ और मैं हिमाद्रि हॉस्टल के उस आम के पेड़ तक जा पहुंचे। मैंने अपनी जैकेट निकाली।
'तो तुम इस तरह से अंदर जाते थे, सौरभ ने बोलना शुरू किया लेकिन मैंने उसे चुप
श्श्श... धीरे बोलो. प्लीज़।'
'उसका रूम कहां है?" सौरभ ने फुसफुसाते हुए कहा । मैंने खिड़की की ओर इशारा किया।
और अगर तुम यहां से गिर गए तो?" 'दर्जनों बार यह कर चुका हूं।"
'लेकिन ब्लेंडर्स प्राइड पीकर नहीं।'
'रिलैक्स, कुछ नहीं होगा,' मैंने वार्मअप करते हुए कहा। फिर मैंने पेड़ का तना पकड़ा और पहली डाल पर चढ़ गया। मैं यह सब इतनी बार कर चुका था कि अब मुझे इसकी आदत हो चुकी थी। पेड़ पर चढ़ जाने के बाद
मैंने सौरभ को देखा और फुसफुसाते हुए कहा- 'तुम यहां बेट करो। कोई आए तो खांस देना।"
'होगा तो कुछ नहीं। अच्छा फिर ऐसा करना कि कोई आए तो उसे बातों में उलझा लेना और यह समझाने लगना कि तुम यहां पर क्या कर रहे हो।'